19 June, 2008

विरोधाभास...



कोहरे वाली एक रात में
एक नन्हा बच्चा
फुटपाथ के ठंढे फर्श पर
आंसुओं की चादर ओढ़ कर सो गया

और मैं समझती थी
मेरा दुःख सबसे ज्यादा है...

5 comments:

  1. तमाम मिठाईयों और खानों से
    पटा पडा था वो बाजार मगर।
    भूख से एक मासूम वहीं
    बिलख बिलख के मर गया।

    और मैं समझता रहा
    मेरा दर्द सबसे ज्यादा है।।

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  2. ख़्याल उलझ जाते हैं मेरे
    जब किसी बच्चे की भूख
    कविता बनके सामने आती है...

    और बुश कहता है :
    भारतीय दिन में तीन बार खाते हैं
    इसलिए वह(अमेरिकन) भूखे हैं...

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  3. अजीब इत्तेफाक है कल से इसी बात पर एक ख्याल आया था ..कल पल्लवी ने पोस्ट किया ओर आज आपने ,हम एक दिन के लिए टाल देते है ,.......आपका ये अंदाज भी अच्छा लगा ....

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  4. बहुत ही भावुक कर देने वाली कविता..

    हृदय विदीर्ण कर दिया

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  5. कितने कम लफ्जों में जो एहसास आते हैं इन पंक्तियों को पढ़कर, वो बयां नही किये जा सकते ... बहुत ही स्पर्शी रचना, कल रात कुछ ऐसे ही ख्याल मेरी आँखों के सामने आ रहे थे जब महानगर से निशातगंज जाने वाले over bridge के फूटपाथ पर ६३ जिंदगियों को सोते हुए देखा ... और मैं समझता था ... मेरा दुःख सबसे ज्यादा है ...

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