30 April, 2010

चाँद रातों के तागे

तेरी तलाश में फिर खुद को खंगाला हमने
लम्हा लम्हा कई यादों को निकाला हमने

दर्द सुलझे कई, उलझे कई धड़कन की तरह
बस खुदी को दिया जख्मों का हवाला हमने

साँस की तरह तेरा नाम हवा में घोला
पर ना चक्खा तेरे होठों का भी प्याला हमने

तेरा घर देखा और देख के मुस्काया किये
चाबी थी पर कभी खोला नहीं ताला हमने

चाँद रातों में तेरी याद के तागे काते
ओढा जाड़ों में हिज्र का वो दुशाला हमने

अब के पहले तुझे भूलूं ऐसा भी मुमकिन था
चाहा भी नहीं, ना दिल को सम्हाला हमने

20 comments:

  1. तो अब गजले भी.. अच्छा है

    चाबी थी पर कभी खोला नहीं ताला हमने

    ये मस्त है..

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  2. और हाँ टेम्पलेट भी बढ़िया है.. .रिफ्रेशिंग!!

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  3. mujhe yeh wala achchha laga

    चाँद रातों में तेरी याद के तागे काते
    ओढा जाड़ों में हिज्र का वो दुशाला हमने

    aur haan shirshak mast lagayi hai

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  4. बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ... मैं सोच ही रहा था कि आप इतने अच्छे शब्दों के खिलाडी है और आप ग़ज़ल क्यूँ नहीं लिखते हैं ... और सच में आपने ग़ज़ल लिख दी है ...
    हर शेर अच्छा है ... हमेशा कि तरह आप शब्दों का जाल बुन दिए हैं ...
    ये शेर बहुत अच्छा लगा
    चाँद रातों में तेरी याद के तागे काते
    ओढा जाड़ों में हिज्र का वो दुशाला हमने

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  5. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  6. ग़ज़ल खूबसूरत है
    मगर झूले वाली तस्वीर याद आ रही है.

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  7. बेहतरीन गज़ल

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  8. ये टेम्पलेट बढ़िया है :)

    पिछला मेरी गुजारिश पर बदला ? खैर जाने दीजिए :)

    बदलने के लिए शुक्रिया ये मोबाइल में बढ़िया खुलेगा

    और आपकी रचना पर क्या कहें

    उम्दा भाव है

    आज की पोस्ट पढ़ कर खुद का लिखा एक शेर याद आया जो आज की पोस्ट के लिए आप पर फिट बैठ रहा है

    जाने कितना फन समेटे है मेरा अहले सुखन
    हर अदा की इब्तिदा पर चौंकता रहता हूँ मै

    अहले सुखन - मेरे अंदर का शायर
    इब्तिदा - शुरुआत, आगाज़

    आगाज़ बहुत उम्दा है इस सफर को भी आगे बढाईये

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  9. चाँद रातों में तेरी याद के तागे काते
    ओढा जाड़ों में हिज्र का वो दुशाला हमने

    ये शेर हमारा हुआ.......उधारी में .......

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  10. ऐसी दुविधा में बहुत बिताई हैं राते हमने।
    ऐसी कविता न कर पाये - कुछ नुक्स रहा होगा दुविधा में!

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  11. चाँद रातों में तेरी याद के तागे काते
    ओढा जाड़ों में हिज्र का वो दुशाला हमने
    .. badi nafasat hai...

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  12. बेहतरीन गज़ल

    http://madhavrai.blogspot.com/

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  13. चाबी थी पर कभी खोला नही ताला हमने ... बढ़िया प्रयोग है ।

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  14. अब के पहले तुझे भूलूं ऐसा भी मुमकिन था
    चाहा भी नहीं, ना दिल को सम्हाला हमने

    kya baat hai aapke blog par pahali baar aaya lekin afsos der se kyun aaya, badhai

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  15. कितनी बेतरतीबी से पढ़ लिया, ये गडबडझाला हमने!! :P

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