04 January, 2014

चिंगारी की तीखी धाह

सपने मुझसे कहीं ज्यादा क्रियेटिव हैं। जहाँ मैं जागते नहीं जा सकती, एक मीठी नींद मुझे पहुँचा देती है। कल सपने में तुम्हें देखा। अपने बचपन के घर में...मेरा जो कमरा खास मेरे लिये बना है, वहाँ। जाने क्या करने आये थे तुम। मैं तुम्हें इगनोर करने में व्यस्त थी, पूछा भी नहीं। एक मुस्कुराहट भी नहीं...किस मोड़ पर आ पहुंचे हम अपनी जिद से। एक वक्त था, तुम्हें देख कर मुस्कुराहटों का झरना फूट पड़ता था। कितना भी रोकती...बस तुम्हारा होना काफी होता। याद मुझे कल का भी है...तुम कितने कौतुहल से घूम रहे थे मेरे घर में...तुम्हें कभी बताया भी तो नहीं था...मेरा घर, पीछे का पोखर, आगे का पीले फूलों वाला पेड़...सर्पगंधा...कामिनी...और जो जंगली गुलाब खुद उग आये थे।

बात सपने से शुरु होती है मगर उसे ठहरना कहाँ आता है...छोटी सी पहाड़ी और उसके पीछे डूबता सूरज। तुम्हारी वापसी की फ्लाइट कब की है? शहर आये हो, मिलते हुये जाना। यूं मेरे अलावा उस शहर में कुछ खास नहीं है, कसम से।
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तुमसे प्यार की उम्मीद करना गलत है...जैसे मुझसे उम्मीद की उम्मीद करना। जिसे जो मिलता है, वही तो वापस दे सकता है। तुम्हारा रीता प्याला देखती हूं। गड़बड़ खुदा की है कि तुम्हारे प्याले में पेन्दा ही गायब है...दुनिया भर का इश्क तुम्हें अधूरा ही छोड़ेगा...पूरेपन के लिये बने ही नहीं हो तुम। लोगों को याद तुम्हारा पागलपन रह जाता है, मगर मुझे तुम्हारा दर्द क्युं दिखा...अब भी...रात हिचकियां आयीं तो मुझे पूरा यकीन था कि इस वक्त तुमने ही याद किया होगा मुझे।

देर तक छाया गांगुली की आवाज़ में पिया बाज़ प्याला सुन रही थी...तुम्हारी बहुत याद आ रही है आजकल, उम्मीद है, तुम अच्छे से होगे। ऐसी बेमुरव्वत याद आनी नहीं चाहिये। यूं होना तो बहुत कुछ नही चाहिये जिन्दगी में, मगर जिन्दगी हमारी चाहतों के हिसाब से तो चलने से रही।
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एक उजाड़ सा खंडहर है। अभिशप्त। एक अंधा कुआं है। चुप एकदम। और एक राजकुमारी है, जिसे समय के खत्म हो जाने तक वहीं बंद रहना है। कभी कभी तेज हवायें चलती हैं तो पीपल के पत्ते बजते है, राजकुमारी का चंचल मन पायल पहनने को हो आता है। मगर पायल को भी श्राप लगा है। जैसे ही राजकुमारी अपने पैरों में बाँधती है, पायल काँटे वाले नाग में तब्दील हो जाती है। फिर राजकुमारी जहां भी जाती है उसकी दुष्ट सौतेली मां को खबर हो जाती है और वो राजकुमारी से उसकी मां के दिये कान के बूंदे छीन लेती है। राजकुमारी बहुत रोती है, लेकिन उस दुष्ट का कलेजा नहीं पसीजता। वे जादू के बून्दे थे, रोज रात को ऐसा लगता जैसे मां लोरियाँ सुना रही हो...राजकुमारी चैन की नींद सो पाती। पैरों से पायल उतारने में नागों ने राजकुमारी को कई बार डस लिया। उसकी उँगलियां सूज गयीं। चुप की लंबी रात काटने के लिये अब राजकुमारी चिट्ठियां भी नहीं लिख सकती थी, अपना प्यारा पियानो भी नहीं बजा सकती...हवा में तैरता हुआ गीत पहुंचता है कभी कभी और बांसुरी की आवाज। राजकुमारी को यकीन है कि ये बांसुरी की आवाज भी अाज के वक्त की नहीं है। द्वापर में कृष्ण भगवान ने जो बंसी बजायी थी, ये उसी बांसुरी के भटकते हुये सुर हैं। सामने एक अदृश्य दीवार है जो उसे कहीं जाने नही देती। उसे कभी कभी यकीन नहीं होता कि दुनिया वाकई है या सिर्फ उसकी कल्पना से सारा कुछ दिखता है उसे। सदियों से अकेले रहने पर थोड़ा बहुत पागलपन उग जाता है, खरपतवार की तरह।
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राजकुमारी जमीन की धूल में एक अक्षर लिखती है...मैं दर्द से छटपटा के जागती हूं। उस अक्षर से सिर्फ तुम्हारा नाम तो नहीं शुरु होता।
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2 comments:

  1. मन न जाने कहाँ कहाँ ले जाता है, जागते में न सही, सोते में।

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  2. चिंगारी की थाह नींद में सपने दे जाते हैं!

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